Monday, 13 December 2010

केइ वार

म्हे म्हारो नांव भूल जावूं,
भींत माथै खींचदूं कोरी लींगटियां,
भींत सूं म्हारो आंतरो
अेक पूरो इतियास,
आफळूं संवेटण सारु
मारग रा मांडणा
उमर रै भागोड़ै गोवै,
जाळ अर कैर रै ओळै दोळै
चढाय धजा
बण जावूं देवळी
आखा अर जोत रै सागै
रातीजोगै री बोलमा
करवाय दूं केइ वार,
बगत री बाय
थरपीजै नूंवा थांन
आवै नूंवां भोपा
दीरीजै नूंवा परचा
अर म्हे
आं सूं अळगो
भटकतो फिरुं छांणा अर सिणियां नै,
केई वार म्हे
चढ कागदां री पूठ
पून रै सरणाटै पूंगू मनमरजी रा हलका में
करतौ सांनियां
घालतौ उंधी सीधी आडियां
नाचतौ रैवूं
गमण लाधण री लुका छिपी,
जूनी साळां ,ओरण ,नाडियां
सोधतौ फिरुं
कांई ठा किणनै,
केइ वार जद म्हे म्हारो नांव भूल जावूं........
लिखारा : अर्जुनदेव चारण

Wednesday, 8 December 2010

सैंया सुणो तो सरी !

रामजी दयालु जणे क्यूं बिछड़ी
गाय दूजता गोडा फूटा
भैंस दूवता ढकणी फूटी
घर में जाता सासू रो दुख लागो
घर में जाता बारै वांता!
वातां पाणी जातां
धरमराज री पोळ आगे
जमड़ा मारसी लातां
राती जोगा में राजी बाजी!
हीड मींड गावे गीत
लापसड़ी लुंदा मारे
राम आवे न सीत
चोखा घर रा मोठ बाजरी !
आगा उंडा मेले
कांकरा रा दाणा लेने
साद बामण ठेले
सैंया सुणो तो सरी

रामजी दयालु जणे क्यूं बिछड़ी !?

हिवड़े रा भाव

सबदां रै ढीले बंध में
कियां बाधूं  !
हिवड़े रा भाव मरम ढाळूं तो
लिपि विखरे
मातरावां सूं नी ताबै
आखरां सूं आपळता
स्वरां नै नीं सांबळै
इण हिये रा भाव !
सूत्र बणा र सांवट ल्यूं
फर्मा में ही टीप द्यूं
रीत रिवाज सूं अळगा
गणित विज्ञान नी है
हिवड़े रा भाव
जो सोचूं
वै कियां लिखूं
सोचां नै समझ समझावै
थाम थाम र राखूं पण
म्हासूं धके भाज जावै
गोखां सूं झांक इ ल्यै
हिवड़े रा भाव
-किरण राजपुरोहित नितिला

राजस्थानी !!

अेक अेक नै क्यूं बताणी पड़े
क थांरी भासा राजस्थानी !
थे उठो थे जागो अब
थांरो फरज राजस्थानी !
निज घर में निज रै थाने
क्यूं अणजाणी है राजस्थानी
मना मना र बात मनवावां
अेड  थारै संताना राजस्थानी !
डूंगर  री कांई बात करां
पगां नीचली बळै राजस्थानी !
पण सदा न यूं रेसी जी
अब समै बदलै है राजस्थानी !
रीढहीनां है वे लिजलिजा प्राणी
जिका थनै कुरावे राजस्थानी !
चोटी सूं अेक वार आइजै नीचै
ईसो इज समै है राजस्थानी !
वो इज पोछो उठै थरपीजै 
चोखो समै है  आवै राजस्थानी! 
-किरण राजपुरोहित नितिला