
गढं जोधाण उपरे, बैठी पंख पसार ।
अम्बा थारौ आसरो, तूं हीज है रखवार ॥
चावण्ड थारी गोद में, खेल रह्यौ जोधाण ।
तूं हीज निंगे राखजे, थारा टाबर जाण ॥
तूं राणी ब्रम्हाण्ड री, जग री पालण हार ।
किण रै आगे जायनै, मांगू हाथ पसार ॥
तूं शक्ति तूं सरस्वती, तूं लक्ष्मी तूं माय ।
इक थारी किरपा होयां, रिध सिध सारा आय ॥
दे दे इसड़ौ दीद मद, होवै मन तिरपत ।
अटल लोय लागी रहे, चावण्ड चरणां नित ॥
ममतावां री डोर बट, बांध दई चरणाह ।
मृग तृष्णा रेवै नहिं, तरसै नहिं हिरणांह ॥
चुग चुग डोरा मोह रा, बटलूं डोर अजब्ब ।
चावण्ड चरणां बांध दूं, मांडू मौज गजब्ब ॥
करणी री किरपा तणी, आहीज बड़ी पिछाण ।
चित चरणां लागण चहै, सफळ जमारौ जाण ॥
रचित : महाराज प्रेमसिंघ