Friday, 13 July 2007

आपणी भासा रै बिना कियां

मायड़ भासा नै भूल कियां, मायड़ रौ करज चुकावांला ।
आपणी भासा रै बिना कियां, आपणौ अस्तित्व बचावांला ॥

मायड़ भासा वा भासा है, जो घर में बोली जावै है ।
मायड़ री गोदी में टाबर जीं भासा में तुतळावै है ॥

धरती री सौन्धी महक लियां, जो घुंटी-सी पच जावै है ।
मां ममता सूं दुलरावै, जीं भासा में प्रेम लुटावै है ॥

आपणी मायड़ भासा सूं आपां ईं आपणौ सिणगार करां ।
आपणी भासा सूं हेत करया ईं आपणौ धरम निभावांला ॥

आ राजस्थांनी नुवी कोनीं, ईं रौ इतिहास पुराणौ है ।
वौ टौड अर ग्रियसन तक, इणरी महत्ता नै मानी है ॥

मरुधर री आ भासा पण, सबदां रौ घणौ खजानौ है ।
ग्रंथां री कोई कमी कोनीं, या सच्चाई समझणी है ॥

सैं लोग आपणी भासा नै, मायड़ भासा नै चावै है ।
आपां ईं मायड़ भासा रा, इब सांचा पूत कुहावांला ॥

जीं भासा में मीरा गाई, रस भगती रौ सरसायौ हौ ।
राणा प्रताप-भामासा, जीं धरती रौ मान बधायौ हौ ॥

पदमणियां सत रक्षा नै, जौहर रौ पाठ पढायौ हौ ।
धोरा धरती संगीत बणी, किस्सां में जोश सवायौ हौ ॥

वीं राजस्थांनी नै आपणौ, सगळौ अधिकार दिराणौ है ।
यो धरम निभावांला नहीं, तौ पूत कपूत कुहावांला ॥

या सांत करोड़ सपूतां री नीज भासा राजस्थांनी है ।
हरियाणै राजस्थांन अर माळवै री घर-धणियाणी है ॥

तेस्सीतोरी-इटली जायै री, सैं सूं प्यारी वाणी है ।
या मरुभोम री मरुभासा, वीरां री जोश जवाणी है ॥

रजपूतां री तलवारां पर मरुभासा धार चढावै है ।
रणखेतां री ईं भासा पर आपणौ ईं शीश नवावांला ॥

भासा आपणी रै रहया बिना, यो देस कियां बच पावैलौ ।
अर राजस्थांनी बिना कियां, यो राजस्थांनी कुहावेलौ ॥

आपणी संस्कृती नै छोड्या सूं, कियां सम्मान बचावेलौ ।
मायड़ भासा नै बिसरायां, सैं माटी में मिळ जावेलौ ॥

आपणी भासा नै अपणावौ, आपणी भासा मत दुरसावौ ।
धरती माता नै भूल कियां, माटी रौ मोल चुकावांला ॥

मायड़ भासा गळै लगावौ रे

गांव-गांव ढाणी सैरां में अलख जगावौ रे
राजस्थांनी भासा नै गळै लगावौ रे
मायड़ भासा नै सगळाई हिवड़ै लगावौ रे

इण में मीरा री भगती है
इण में वीरां री सगती है
आवौ नीं अणमोल खजानौ खोल बतावौ रे

इण में पदमण री पूंजी है
आजादी इण्में गूंजी है
गफ़लत में सूतां भाया नै परा जगावौ रे

प्रीत कळसिया भर-भर पाया
हालरियौ पूतां रै सुलाया
मावड़ री ममता नै भायां कियां भुलावौ रे

सावण बरसै इंदर गाजै
ढोल नगाड़ा इणमें बाजै
सातौईं फेरा खावै लाडेसर आवै सावौ रे

कुटंब-कबीला एक राखिया
इमरत रा फळ आपां चाखिया
घर सूं काढ़ स्यान थां मत घमावौ रे

रेत में रमियोड़ी भासा
मिनखां रै मनड़ै री आसा
मानतौ मिळ जावै इणनै जतन करावौ रे

इणमें मूमल री मेड़ी है
प्रीत-रीत राचै जैड़ी है
ढोला-मारु हुया मुलक में कोई बतावौ रे

Thursday, 12 July 2007

जीवड़ौ कळपावै क्यूं

चंदौ खुद सरमावै थां सूं, मुखड़ौ थूं मुरझावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

मावस री काळी रातां मांय, थन्नै पुनम रौ भान है कोनी ।
थूं सरवर रौ तैराकी, किनारौ अळ्गौ कोनीं ॥
बायरौ तप हर लेसी, इतरौ थूं घबरावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

थूं पाणी रौ रेलौ है, तोड़ भाखर बह्तौ जा ।
थूं रैण वैर तेज दिवलौ, पवन-पावस सह्तौ जा ॥
थारा पगां मांय माथा नमसी, हिम्मत राख थूं हारै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥


थूं रण बांकुरा कठौ रह्जै, सिंझ्या तांई लडणौ पड़सी ।
सुण पंखेरू चुग्गौ लाय'र, सिंझ्या तांई उडनौ पड़सी ॥
सोरो-दोरो जीवणौ पड़सी, आंसूड़ा ढळकावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

कुण नीं कड़वा घुंट भरया, संसारी दुख रा दरिया मांय ।
कुण पंथी ठोकर नीं खाई, सुळ नीं चुभ्यौ किण हिया मांय ॥
कुण नीं रैण ओझके काढ़ी, कंचन काया बाळै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥