Tuesday, 16 October 2007

आपणी ओळख

आजादी मिळ्यां पछै 30 मार्च 1949 रे दिन राजपुताना री सगळी रियासतां नै अेकठ कर जिण राजस्थान प्रांत रौ गठण व्हियौ, उणरै साथै सगळां सूं म्होठी विडंबना रह्‌यी कै उणरा रैवास्यां नै आपरै काम-काज, विकास अर राज रै साथै संचार-संवाद सारू आपरी मायड़भासा (मातृभाषा) नै बरतण रौ इधकार अर सुविधा नीं हासल व्ही. वां नै आ समझावण री कोसीस करीजी कै शिक्षा, विकास अर राज-काज मांय आपरी भागीदारी बधावण सारू वां नै बेगी-सूं-बेगी उण संपरक भासा नै अंगीकार कर लेवणी चाईजै, जिणरौ राष्ट्रभासा रै रूप मांय पुरौ आव-आदर करै अर उण नै आगै बधावै, पण उणमांय वां री मायड़भासा कठै आड़ी आवै अर उणसूं विकास में कठै फांटौ पड़ै, इण बात रौ उथळौ वां नै किणी नीं दियौ. वांनै इण बात रौ ईं गाढौ अफसोस रह्‌यौ कै वां अंग्रेजी हकूमत अर देसी राजावां सूं लड़ती बगत अर आपरी जीवारी सारू जिण भासा माथै अथाग भरौसो राख्यौ - वांरौ इतिहास, संस्क्रती, रीत-रिवाज, साहित, गीत-संगीत, बिणज-बौपार अर चिट्टी-पत्री सगळौ-कीं परी उणी भासा मांय संज आवतौ, वा भासा आजादी मिळतां ईं रातू-रात राज री निजर मांय इत्ती अकारथ अर अणखावणी किण भांत व्हेगी? नुंवै राज री इण नीती रौ म्यानौ भला कुण बूझतौ अर किण सूं बूझतौ, जद फैसलौ लेवण वाळां मांय वां रा ई आगीवाण भेळौ हूंकार भरियौ व्है?

राजस्थान री सगळी बोलियां रै रुप-गुणां रै मेळ सूं बण्योड़ी राजस्थानी भासा रै मानक सरूप रौ बैवार सन्‌ 1857 री लड़ाई सूं ई मोकळा बरस पैली सूं अठा रै साहित अर कळा-रूपां मांय बखूबी देखण नै मिळै अर उणी मानक सरूप मांय लिख्योड़ै अथाग साहित अर दूजा कळा-रूप राजस्थानी री लूंठी विरासत मानिजै. उण विरासत माथै राज ई मोकौ आया घणौ गुमेज दरसावै पण उणरी मान्यता रौ सवाल सामी आवता ई जाणै क्यूं राज री सगळी कारवायां मौळी पड़ जावै.


आजादी मिळ्यां पछै जिग्यां-जिग्यां टाबरां री स्कूलां खुली. हरेक हलकै अर टाबर आपरै घर-गवाड़ मांय मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ोती, वागड़ी, मेवाती, माळवी क ब्रज बोलता (ब्रज टाळ ए सगळी राजस्थानी री बोलीयां है, ज्यूं हरेक समर्थ भासा मांय व्हिया करै), पण स्कूली भणाई तौ हिन्दी-अग्रेजी मांय ई व्हैती, वांनै राजस्थानी रै मानक सरूप री ओळख कुण करावतौ? बड़ा स्‍हैरा मांय तौ स्कूलां टाळ हिन्दी नै ई कुण पुछै?

अेक ड़ा हालात मांय जद प्रदेस री नुंवी पीढ़ी स्कूल-कोलेजां सूं बारै आय आपरौ आपौ संभाळियौ अर खुद री पिछाण बाबत विचार करणौ सरू कर्‌यौ तौ वा एक अजब दुविधा मांय पजगी. वांरौ समाजू ढांचौ, परिवेस, रीत-रिवाज सैं कि तौ मायड़ भासा मांय ही, पण राज-काज, भणतर अर खुद रै कमतर-करोबार स्सौ कीं हिन्दी कै अंग्रेजी मांय पार पड़तौ. जिका इणमें पैली सूं पारंगत हा अर ठायै री जिग्या माथै हा, वांरौ हाथ तौ उपर रैवणौ ई हौ, जिका कोशिस कर नै वा दियोड़ी भासा सिख लीवी, वै सीखण मांय कामयाब व्हिया पछै ई विकास अर संवाद रा मामला मांय आपरी राय मनावण जोगा कम ई मानीजिया. इणसूं भासा नै लेय’र अेक झिझक अर हिणताबोध मांय-ई-मांय बरसां पळतौ रह्‌यौ अर आगै चाल’र वौ अठै रै मिनखा रौ मांयलौ सुभाव बण्ग्यौ. इण प्रक्रिया सूं जिण लिखण-पढण वाळी पीढी रौ निरमाण व्हियौ उणरौ कन्नै आपरै मन री ओक्ता सारू नीं हिन्दी पूरसल पड़ी नीं राजस्थांनी, दूजी भासावां री बात ई कांई करीजै!

राजस्थानी कविता अठै री न्यारी-न्यारी रियासतां मांय चालती आजादी री लड़ाई रै जोड़ा-जोड़ जिण भांत जन जागरण रौ जिम्मौ संभाळ राख्यौ हौ, वा हिन्दी ई कांई सगळी भारतीय भासावां रै साम्ही अेक ओपती मिशाल ही. बिसवी सदी रै दूजै दसक मांय जठै हिन्दी पौराणिक आख्यान, रूमानी छायावाद अर नुंवै छंद-विधान मांय आपरी पिछाण सोधण सारू आथड़ै ही, राजस्थानी भासा रौ साहित सिरै हौ.

Friday, 13 July 2007

आपणी भासा रै बिना कियां

मायड़ भासा नै भूल कियां, मायड़ रौ करज चुकावांला ।
आपणी भासा रै बिना कियां, आपणौ अस्तित्व बचावांला ॥

मायड़ भासा वा भासा है, जो घर में बोली जावै है ।
मायड़ री गोदी में टाबर जीं भासा में तुतळावै है ॥

धरती री सौन्धी महक लियां, जो घुंटी-सी पच जावै है ।
मां ममता सूं दुलरावै, जीं भासा में प्रेम लुटावै है ॥

आपणी मायड़ भासा सूं आपां ईं आपणौ सिणगार करां ।
आपणी भासा सूं हेत करया ईं आपणौ धरम निभावांला ॥

आ राजस्थांनी नुवी कोनीं, ईं रौ इतिहास पुराणौ है ।
वौ टौड अर ग्रियसन तक, इणरी महत्ता नै मानी है ॥

मरुधर री आ भासा पण, सबदां रौ घणौ खजानौ है ।
ग्रंथां री कोई कमी कोनीं, या सच्चाई समझणी है ॥

सैं लोग आपणी भासा नै, मायड़ भासा नै चावै है ।
आपां ईं मायड़ भासा रा, इब सांचा पूत कुहावांला ॥

जीं भासा में मीरा गाई, रस भगती रौ सरसायौ हौ ।
राणा प्रताप-भामासा, जीं धरती रौ मान बधायौ हौ ॥

पदमणियां सत रक्षा नै, जौहर रौ पाठ पढायौ हौ ।
धोरा धरती संगीत बणी, किस्सां में जोश सवायौ हौ ॥

वीं राजस्थांनी नै आपणौ, सगळौ अधिकार दिराणौ है ।
यो धरम निभावांला नहीं, तौ पूत कपूत कुहावांला ॥

या सांत करोड़ सपूतां री नीज भासा राजस्थांनी है ।
हरियाणै राजस्थांन अर माळवै री घर-धणियाणी है ॥

तेस्सीतोरी-इटली जायै री, सैं सूं प्यारी वाणी है ।
या मरुभोम री मरुभासा, वीरां री जोश जवाणी है ॥

रजपूतां री तलवारां पर मरुभासा धार चढावै है ।
रणखेतां री ईं भासा पर आपणौ ईं शीश नवावांला ॥

भासा आपणी रै रहया बिना, यो देस कियां बच पावैलौ ।
अर राजस्थांनी बिना कियां, यो राजस्थांनी कुहावेलौ ॥

आपणी संस्कृती नै छोड्या सूं, कियां सम्मान बचावेलौ ।
मायड़ भासा नै बिसरायां, सैं माटी में मिळ जावेलौ ॥

आपणी भासा नै अपणावौ, आपणी भासा मत दुरसावौ ।
धरती माता नै भूल कियां, माटी रौ मोल चुकावांला ॥

मायड़ भासा गळै लगावौ रे

गांव-गांव ढाणी सैरां में अलख जगावौ रे
राजस्थांनी भासा नै गळै लगावौ रे
मायड़ भासा नै सगळाई हिवड़ै लगावौ रे

इण में मीरा री भगती है
इण में वीरां री सगती है
आवौ नीं अणमोल खजानौ खोल बतावौ रे

इण में पदमण री पूंजी है
आजादी इण्में गूंजी है
गफ़लत में सूतां भाया नै परा जगावौ रे

प्रीत कळसिया भर-भर पाया
हालरियौ पूतां रै सुलाया
मावड़ री ममता नै भायां कियां भुलावौ रे

सावण बरसै इंदर गाजै
ढोल नगाड़ा इणमें बाजै
सातौईं फेरा खावै लाडेसर आवै सावौ रे

कुटंब-कबीला एक राखिया
इमरत रा फळ आपां चाखिया
घर सूं काढ़ स्यान थां मत घमावौ रे

रेत में रमियोड़ी भासा
मिनखां रै मनड़ै री आसा
मानतौ मिळ जावै इणनै जतन करावौ रे

इणमें मूमल री मेड़ी है
प्रीत-रीत राचै जैड़ी है
ढोला-मारु हुया मुलक में कोई बतावौ रे

Thursday, 12 July 2007

जीवड़ौ कळपावै क्यूं

चंदौ खुद सरमावै थां सूं, मुखड़ौ थूं मुरझावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

मावस री काळी रातां मांय, थन्नै पुनम रौ भान है कोनी ।
थूं सरवर रौ तैराकी, किनारौ अळ्गौ कोनीं ॥
बायरौ तप हर लेसी, इतरौ थूं घबरावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

थूं पाणी रौ रेलौ है, तोड़ भाखर बह्तौ जा ।
थूं रैण वैर तेज दिवलौ, पवन-पावस सह्तौ जा ॥
थारा पगां मांय माथा नमसी, हिम्मत राख थूं हारै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥


थूं रण बांकुरा कठौ रह्जै, सिंझ्या तांई लडणौ पड़सी ।
सुण पंखेरू चुग्गौ लाय'र, सिंझ्या तांई उडनौ पड़सी ॥
सोरो-दोरो जीवणौ पड़सी, आंसूड़ा ढळकावै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥

कुण नीं कड़वा घुंट भरया, संसारी दुख रा दरिया मांय ।
कुण पंथी ठोकर नीं खाई, सुळ नीं चुभ्यौ किण हिया मांय ॥
कुण नीं रैण ओझके काढ़ी, कंचन काया बाळै क्यूं ।
ए भीम बजर छाती रा माणस, जीवड़ौ कळपावै क्यूं ॥